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Kharab Khana
मोहन जी के ढाबे की शुरुवात से पहले वो कचोरी समोसे की लारिया लगाया करते थे, काम भी अच्छे से चल रहा था फिर आखिर इस ख़राब खाने की जरूरत क्यों पड़ी, क्यों बेईमानी.
SHORT HINDI STORYENTERTAINMENT
Yogesh Chandra Sharma
1 min read


Kharab Khana
ख़राब खाना
कहानी लेखक :- योगेश चंद्र शर्मा
लीगल राइट्स – Kharab khana (ख़राब खाना) शीर्षक नाम से यह कहानी पूर्णतया कल्पना पर आधारित हे जिसका किसी वास्तविक जीवन से कोई लेना देना नहीं हे एवं लेखक ने स्वयं इसे कल्पना के आधार पर लिखा हे यदि कोई व्यक्ति इस कहानी को कही भी किसी भी रूप मे काम मे लेता हे तो उस व्यक्ति को पहले लेखक को इस कहानी का पूर्ण भुगतान करना होगा। यदि कोई व्यक्ति लेखक की अनुमति के बिना अपने काम मै लेगा तो लेखक को स्वतंत्र रूप से उस व्यक्ति पर क़ानूनी कार्यवाही करने का पूर्ण अधिकार होगा। जिसके समस्त हर्जे खर्चे का जिम्मेदार इस कहानी का दुरूपयोग करने वाला वह व्यक्ति स्वयं होगा। कृपया कहानी को लेखक से ख़रीदे बिना कही भी प्रयोग मै न लाये।
काफी समय से इस इलाके में अगर खाने की बात की जाए तो एक ही नाम मशहूर हे "मोहन जी का ढाबा" इसका मशहूर होना बनता भी हे क्योकि यहाँ बने खाने की तारीफ न सिर्फ पुरे शहर के लोगो को यहाँ खींच लाती हे बल्कि आप-पास के गांव शहर में जहा जहा तक यहाँ के खाने की बात पहुँचती चली गयी लोग खींचे चले आने लगे थे और देखते ही देखते मोहन जी का कारोबार काफी फलने - फूलने लगा, और जब कारोबार फलने फूलने लगता हे तो उसी कारोबार से जुड़े कुछ लोग और अफसर अधिकारीगण की दुश्मनी का भी सामना करना पड़ता हे, खैर मोहन जी के लिए ये सब कोई नयी बात नहीं थी वो लगभग पिछले 20 सालो से खाने से जुड़े इसी कारोबार से ही जुड़े थे|
मोहन जी के ढाबे की शुरुवात से पहले वो कचोरी समोसे की लारिया लगाया करते थे, परिश्रम काफी किया था इसलिए मोहन जी अपने कमाए एक-एक रुपये की कीमत अच्छे से जानते थे परन्तु इस मामले में उनका बेटा रौनक अभी इतना समझदार नहीं हो पाया था, क्योकि मोहन जी काम बरसो से इस इलाके में चला आ रहा था इसलिए अधिकारी अफसरों के बिच भी उनकी अच्छी पहचान बनी हुई थी, रुतबा इतना था की लोग कभी कभी अफसरों से अपना काम निकलवाने के लिए मोहन जी को ही याद करते थे |
और इसी वजह से मोहन जी के साथ साथ लोग मोहन जी के बेटे रोहन का भी सम्मान करते थे, रोहन भी पिता की इस उपलब्धि का फायदा उठाने से नहीं चुकता था और इसका असर लोगो को रोहन के थोड़े मगर घमंडी स्वाभाव में देखने को मिल जाता था | और रही सही कसर रोहन के दोस्त उसके पिताजी की तारीफों के पूल बांध कर पूरी कर दिया करते थे | फिर भी मोहन जी के परिवार की ज़िंदगी मोहन जी के कारण मज़े से चल रही थी | वक़्त बीतता गया और एक दिन अचानक से मोहन जी के ढाबे पर पुलिस का एक हुजूम उमड़ा चला आया, लोगो को लगा ढाबा हे तो हो सकता हे पुलिस खाना खाने के लिए आयी हो पर इस बात की कल्पना तो शायद ही किसी ने नहीं की होगी की पुलिस वहा मोहन जी के ढाबे को बंद करने आयी थी ।
किसी जलनखोर ने कम्प्लेन कर दी होगी, नहीं हो सकता हे ज्यादा पेसो का घमंड आएगा होगा तभी कुछ उल्टा सुलटा काम किया होगा, जितने भी लोग ढाबे के आस पास से गुजर रहे थे देखते देखते अपने ही मन से बाते जोड़ते जा रहे थे| परन्तु इसमें से अधिकतर वही लोग थे जिनको अब भी लग रहा था मोहन जी जैसा आदमी तो कभी कोई गलत काम कर ही नहीं सकता |
तभी पुलिस की टीम में से एक अधिकारी ने ढाबे को सील करने और मोहन जी को अपने साथ चलने को कहा | मोहन जी खुद भी नहीं समझ पा रहे थे की एक पल पहले सब ठीक था अचानक से ये सब हो क्या रहा हे पर शायद मोहन जी को इस बात का अंदाजा जरूर था की क्यों हो रहा हे | पुलिस के रौब के सामने अपनी डरी सहमी सी आवाज़ से मोहन जी ने उस पुलिस अधिकारी से पूछा "आखिर हुआ क्या हे साहब?? मेरी गलती तो बता दीजिये"
तुम लोगो के खाने को जहर बना रहे हो तुम्हारे यहाँ खाने का जूठा सामान एक थाली से दूसरी थाली में चुपके से पंहुचा दिया जाता हे, और साथ में तुम्हारे खाने में काम में आने वाली चीज़े भी सड़ी और ख़राब होती हे..हमारे पास इसके कई सारे वीडियो मौजूद हे… पुलिस ने भारी आवाज़ में कहा…
मोहन जी अपने कर्मो के बारे में अच्छे से जानते थे इसलिए उन्होंने चुप रहने में ही भलाई समझी, पुलिस टीम में आये अधिकतर पुलिस वाले वही थे जो अक्सर मोहन जी के यही ढाबे पर खाते थे और इसी वजह से वो पुलिस वाले खुद भी मोहन जी पर भड़के हुए थे |
चारो और ये खबर जंगल में आग की तरह फैल गयी, जो लोग मोहन जी को आदर सम्मान दिया करते थे वही आज उनके नाम से थू-थू कर रहे थे |
शुरुवात में जब मोहन जी पर कार्यवाही की गयी तो रोहन अपने पिता की इस हरकत को मानाने को तैयार ही नहीं था परन्तु जब मोहन जी पर मुकदमा चला और उनके किये खराब कामो के बारे में एक-एक कर के सबूत साबित किये गए तो उससे रोहन की भी आंखे खुल आयी |
काफी दिन कोर्ट कचहरी के चक्कर में भाग दौड़ में बैठे, लोगो से भी तरह तरह की बाते सुनी और आखिरकार आज वो दिन आ ही गया जब मोहन जी पर चल रहे मुक़दमे का फैसला होना था | कुछ देर में मुक़दमे की अंतिम सुनवाई की कार्यवाही के साथ जज साहब से मोहन जी के खिलाफ जेल की सजा का भी एलान कर दिया |
सजा का एलान होते ही मोहन जी की नज़र सबसे पहले वही कोर्ट में बैठे अपने बेटे के चेहरे पर पड़ी, उन्हें रोहन की आँखों में खुद के लिए शर्मिंदगी नज़र आयी ऐसा लग रहा था मानो रोहन को उनसे यही पूछ रहा हो की पापा आपका इतना नाम था और काम भी अच्छे से चल रहा था फिर आखिर इस ख़राब खाने की जरूरत क्यों पड़ी, क्यों आपने बेईमानी का रास्ता चुना और आपकी ज़िंदगी तो अब तक आधी से ज्यादा बीत भी गयी हमारे भविष्य का भी तो सोचा होता..अब हम कैसे इन्ही लोगो के बिच रह कर अपना काम करेंगे …आपने पुरे शहर में अपना नाम बना लिया था हम ऐसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ा सकते थे ..जरूरत ही क्या थी आखिर ये सब करने की… इसी सारे घटनाक्रम को सोचते सोचते मन ही मन मोहन जी खुद से पूछ रहे थे आखिर मेने इतना गिरा हुआ काम क्यों किया आखिर मेने ये सब गलत काम चुना ही क्यों... अचानक से धड़ाम की आवाज़ पुरे कोर्ट परिसर में गूंज उठी…. लोगो के बिच अफरा तफरी मच गयी इस बात को जानने के लिए की क्या हो गया …….. कुर्सी पर बैठे जज साहब ने मोहन जी और देखा और कहा इनका फैसला तो खुद भगवान ने ही कर दिया क्युकी अचानक से आये हार्ट अटैक ने एक पल में मोहन जी की जान ले ली|
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