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वो याद आये — Vo Yaad Aaye
बेंच पर अकेले बैठे मोहन बाबू आज बहुत भावुक मन से अतीत के उन पन्नो को पलट रहे थे जैसे मानो सब कुछ आज कल की ही बात हो। एक एक कर जैसे जैसे यादे मोहन बाबू के मन मस्तिक्ष पर गुम रही थी वैसे ही उनकी आँखों से आंसुओ की धाराएं बहती ही जा रही थी। आज तो मानो जैसे यादो और आंसुओ के बिच होड़ सी मची हो, देखते हे पहले कौन रुकेगा।
न यादे रुकने का नाम ले रही थी न आंसू खुद को मोहन बाबू की आँखों से बहने से रोक पा रहे थे। मोहन बाबू अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव पर थे आज न जाने क्यों उन्हें रह रह कर पुरानी सारी बाते एक एक कर याद आये ही जा रही थी
मोहन बाबू के 3 छोटे भाई जो की अब इस दुनिया में नहीं रहे और मोहन बाबू स्वयं इन यादो का हिस्सा रहे। पुरानी एक एक बात मोहन बाबू के दिल पर इतनी गहरी चोट कर रही थी की वो चाहते तो भी अपनी आँखों के आंसू आज नहीं रोक पाते। चारो भाइयो में सबसे बड़े भाई मोहन बाबू ही थे और आज नियति यह दिन दिखा रही की मोहन बाबू के सिवाय सब उन्हें छोड़ इस दुनिया से अलविदा कह चुके थे। यहाँ तक की मोहन बाबू के आज से पहले जितने भी दोस्त रहे वो सब भी एक एक कर के मोहन बाबू से पहले दुनिया को अलविदा कह चुके थे। उन सब की यादे भी मोहन बाबू की नज़रो के सामने गुमने लगी यही वो जगह थी जहा आज मोहन बाबू बैठे रो रहे थे। यही उनके सारे दोस्त और भाई बचपन में खेला करते थे तब आज का पार्क इतना बड़ा पार्क नहीं था। यहाँ उस वक़्त खुला मैदान हुआ करता था जहा दिन भर मोहन बाबू और उनके सभी साथी टोली बना कर तरह तरह के खेलो को खेला करते थे। बचपन में उन लोगो ने इतना वक़्त एक दूसरे के साथ बिताया की न उन्हें सिर्फ सुबह होने का ही होश रहता ताकि सुबह होते ही दोस्तों के साथ खेल कूद के लिए घर पर देर शाम तक जब तक माँ की डाटने की आवाज़ न आये तब तक लोट आने की याद न आना। लगभग यही दिनचर्या उस समय मोहन बाबू की पूरी टोली की रही। जैसे जैसे वक़्त बिता ये सभी बड़े होते चले गए परन्तु अब भी इन सबके बिच जो चीज़ नहीं बदली वो थी आज के इस पार्क में एक साथ एक दूसरे के साथ वक़्त बिताना। यादो के घूमते पहिये में जब माँ का जिक्र मन में आया तो मोहन बाबू फुट फुट कर रोने लगे।
मोहन बाबू चाहते थे माँ को एक अच्छी और खुशहाल ज़िदगी देना परन्तु किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और मोहन बाबू की ज़िंदगी के स्वर्णिम दिन आने से पहले ही उनकी माता जी इस दुनिया को छोड़ कर जा चुकी थी। ऐसा नहीं हे की यह सारी को आज या कल की बाते हो ये सारी बाते कई सालो पुरानी बाते हे परन्तु यादो पर कहा किसी का बस चलता हे। आज यादो का भवर काफी तेज़ी से मोहन बाबू के मन मस्तिक्ष पर छाया हुआ था जिससे बच पाना आज उनके बस की बात नहीं थी।
वैसे तो मोहन बाबू अपनों की याद में अक्सर यहाँ आ जाया करते थे परन्तु जब से उनका बुढ़ापा उनके शरीर पर हावी हुआ हे तब से वो चाहते हुए भी यहाँ काफी सालो से नहीं आ पा रहे थे आज काफी ज़िद के बाद अपने बेटे के साथ फिर से इस जगह पर आये। यहाँ आने पर मानो जैसे मोहन बाबू को एक अलग ही सुकून मिला हो।
मोहन बाबू की आंखे अभी भी आंसुओ से भीगी हुई थी और उन्हें यु बच्चो की तरह रोता देख उनका बेटा प्रकाश जो आस पास ही पार्क में इधर उधर फिर से घर जाने के इंतज़ार में गुम रहा था दौड़ा चला आया। क्या हुआ पापा क्यों रो रहे हो। मोहन बाबू की रोने की आवाज़ अब एक दम खामोश हो चुकी थी बेसुध हो कर मोहन बाबू अब उसी बेंच पर गिर पड़े थे जहा कभी वो और उनके दोस्त बैठा करते थे।
उधर मोहन बाबू का बेटा उन्हें बार बार उठने के लिए पुकार रहा था परन्तु अब तक मोहन बाबू अपने गम में तल्लीन हो कर दुनिया छोड़ चुके थे शायद ये वो यादे ही थी जो आज मोहन बाबू को अपने अंतिम समय से पहले इस जगह पर खींच लायी और शायद यही मोहन बाबू की अंतिम ख्वाइश भी रही हो की इसी जगह जहा उनकी ज़िंदगी के स्वर्णिम पल बीते वही वो इस दुनिया को अलविदा कह जाये। शाम के सूरज के साथ साथ आज मोहन बाबू की ज़िंदगी का चिराग भी बुज चूका था आस पास काफी लोगो की भीड़ जमा हो चुकी थी जो की सब अनजान होते हुए भी मोहन बाबू के बेटे को दिलासा दे रहे थे और उनके घर जाने की तयारी में जुट गए थे।
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