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Man Bhar Gaya – मन भर गया
कहानी लेखक :- योगेश चंद्र शर्मा
लीगल राइट्स – यह कहानी पूर्णतया कल्पना पर आधारित हे जिसका किसी वास्तविक जीवन से कोई लेना देना नहीं हे एवं लेखक ने स्वयं इसे कल्पना के आधार पर लिखा हे यदि कोई व्यक्ति इस कहानी को कही भी किसी भी रूप मे काम मे लेता हे तो उस व्यक्ति को पहले लेखक को इस कहानी का पूर्ण भुगतान करना होगा। यदि कोई व्यक्ति लेखक की अनुमति के बिना अपने काम मै लेगा तो लेखक को स्वतंत्र रूप से उस व्यक्ति पर क़ानूनी कार्यवाही करने का पूर्ण अधिकार होगा। जिसके समस्त हर्जे खर्चे का जिम्मेदार इस कहानी का दुरूपयोग करने वाला वह व्यक्ति स्वयं होगा। कृपया कहानी को लेखक से ख़रीदे बिना कही भी प्रयोग मै न लाये।
एक व्यक्ति अपनी ही धून में खोया एक गली से गुजर रहा था, अचानक से उसकी नज़र एक घर के बाहर लगे फूलो पर पड़ी, फूल काफी सुन्दर थे, देखते ही हर किसी का मन फूलो की और आकर्षित होना स्वाभाविक था और यही वजह थी की फूलो को घर की बाहर की और लगाया भी गया था । हालाकि फूलो को लगाने वाले ने फूलो की सुरक्षा में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी परन्तु ये भी सच हे की इंसान का स्वाभाव ही कुछ ऐसा हे जिसे जब कोई चीज़ पसंद आजाती हे तो उसे पाने के लिए वो सही गलत का निर्णय करना तक भूल जाता हे। कुछ ऐसा ही इस मनुष्य के साथ भी हुआ और जैसे तैसे ही सही वो वहा से कुछ फूल तोड़ लाया |
ये अलग बात हे चोरी के इस प्रयास में उन फूलो के मालिक ने उस आदमी को बहुत दूर तक दौड़ाया भी, पर क्या करे, अपनी पसंद को पाने के लिए इतना खतरा तो मोल लिया ही जा सकता था।
चुराए हुए फूलो को घर ला कर वो आदमी काफी खुश था …2-3 दिन तक उस आदमी की नज़र घर में कही भी आते-जाते, फूलो पर ही टिकी रहती, इस बिच उस आदमी का दोस्त भी घर पर आया और उसने फूलो की चोरी से जुड़ा किस्सा अपने दोस्त को भी बताया, कैसे उसने मामूली फूलो के लिए खुद की इज्जत दाँव पर लगा ली और आखिर फूल ले कर ही माना, दोस्त को बताते वक़्त बातो में काफी नमक मसाला जोड़ दिया गया आखिर दोस्त की नज़र में हीरो भी तो बने रहना था|
कुछ दिन बीतने के बाद फूल मुरझाने लगे, जो की स्वाभाविक था| जब उस आदमी ने फूलो की और देखा, वो थोड़ा उदास हुआ इतना सुन्दर फूल और इतनी मेहनत और संघर्ष से हासिल किया फूल अब मुरझाने लगा, वो आदमी मन ही मन काफी उदास हुआ, पर अब वो कर भी क्या सकता था, ये तो प्रकृति का नियम हे जिसके सामने वो आदमी भी बेबस था|
जब दोस्त से इस बारे में बात की तो दोस्त होने के नाते उसे दोस्त ने सुझाव दिया, मार्केट से ऐसे और नए फूल ला कर तुम भी उसकी देख-रेख कर लो ऐसी कोई बड़ी बात तो हे नहीं, न ही ये समस्या ऐसी हे जिसका कोई हल नहीं, हा इस तरह का जो फूल हे बिलकुल उसी किस्म का फूल मिलना मुश्किल हो सकता हे, साथ में सिर्फ फूल लगा देना तो काफी नहीं उसकी देख-रेख करना भी तो जरुरी वरना ये जरूर हो सकता की वो इस तरह न खिले|
क्या फायदा इतनी सब मेहनत भी करूँगा और एक दिन वो फूल फिर मुरझा जायेगा, बस यही सोच कर वास्तविक फूलो की बजाय आर्टिफिशियल (बनावटी) फूल लाये गए, वैसे भी दोस्त की बात सिर्फ सुनने के लिए होती हे मानी थोड़ी जाती हे, करना तो वही होता हे जो हमें करना हे | आर्टिफिशियल (बनावटी) फूलो को लाने के पीछे शायद यही सोच रही हो, खेर जो भी हो अब आर्टिफिशियल (बनावटी) फूल घर में आ चुके थे |
आते जाते कुछ दिनों तक घर में इधर उधर घूमते हुए उन फूलो की तरफ देखना और खुश होना एक तरह से उस आदमी की ज़िंदगी का हिस्सा बन चूका था|
दिन बीतते चले गए, चुकी अब फूल आर्टिफिशियल (बनावटी) थे तो मुरझाने वाले तो थे नहीं, तो देखा जाये तो उस व्यक्ति की ज़िंदगी से फूलो के मुरझा जाने का दुःख तो जा ही चूका था| पंरतु अब उस आदमी ने उन फूलो की और देखना कम कर दिया था| एक दिन किसी काम से दोस्त घर आया उसने उस आदमी से फूलो के बारे में पूछा|
फूलो के बारे में उस दोस्त को बस एक ही जवाब मिला… कोनसे फूल? ? अब तो “मन भर गया….”
दोस्त की नज़र यकायक वहा रखे एक अख़बार की हैडलाइन पर पड़ी जिसमे लिखा था “प्यार में पड़े, प्रेमी घर से फरार” कुछ फूलो के साथ साथ माली भी मुरझा जाते हे क्योकि वहा भी किसी का मन भर गया होता हे, और यहाँ भी किसी फूल के साथ साथ माली के भी मुरझाने का समय आ चूका हे |… दोस्त इसी सोच में डुब कर कर खुद में खोया सा रह गया|
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