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नरक का साम्राज्य – भाग 1

narak ka samrajya 1

नरक का साम्राज्य – भाग 1

क्या हुआ कुछ परेशान लग रहे हो ? नरेश ने विवेक के पास रखी कुर्सी पर बैठते हुए कहा।

हा यार परेशानी की तो बात हे पिछले दिनों से मेरे साथ कुछ अजीब ही घटना घट रही हे।। विवेक ने उदास स्वर में कहा

अरे ऐसा भी क्या हो गया … नरेश ने चहरे पर थोड़ी हसी लाते हुए पूछा ताकि विवेक को सब कुछ सामान्य लगे और थोड़ी राहत महूस हो पाए।

यार कुछ दिनों से मेने भगवान से जो भी माँगा हे उसका उलटा ही मेरे साथ बीत रहा हे, समज ही नहीं आ रहा की आखिर मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा और सबसे अजीब बात तो ये की पहले भगवान से कुछ माँगा तो कभी टाइम से मिला ही नहीं और इस बार जैसे ही कुछ मांग लिया वैसे ही कुछ दिनों में उसका उल्टा पुल्टा कुछ अजीब सा ही मेरे साथ होना तय हे।

नरेश जो अब तक सब सामान्य सा होने की उम्मीद विवेक को बंधा रहा था वो सब कुछ भूल कर एक दम से चौक कर बोला।।
जैसे की ???

जैसे की मेने परसो ही भगवान से माँगा था की मुझे एक अच्छी सी कार मिल जाये ताकि में आराम से ऑफिस आ जा सकू …पर तुम्हे पता हे मुझे क्या मिला?

क्या मिला ? नरेश ने विवेक की बात को आगे बढ़ाते हुए पूछा

मुझे मिला एक गधा वो भी मेरे घर के मुख्य दरवाजे पर .. विवेक ने खीजते हुए कहा

अरे तो इसमें भगवान को दोष देने की क्या जरूरत हे ? नरेश ने थोड़ा आश्ववस्त होते हुए कहा .. किसी ने तुम्हारे घर के आस पास छोड़ दिया होगा गधे को।।।

तुझे पता हे न मेरा फ्लेट पांचवे माले पर हे।। विवेक ने नरेश को तिरछी नज़र से देखते हुए कहा।

हा तो क्या हुआ आगया होगा गधा लिफ्ट से … अब तक उसका इतना विकास तो हुआ ही होगा की लिफ्ट कैसे चलती हे इतना तो समज ही गया होगा … नरेश ने माहौल को खुशनुमा बनाते हुए कहा।

यार एक दो बार होता तो शायद में भी इधर उधर का कुछ सोच कर टाल देता पर हर बार ही ऐसा ही कुछ उल्टा सीधा हो रहा हे मेरे साथ । विवेक ने झल्लाते हुए कहा।

अरे तो इतना गुस्सा क्यों हो रहा हे भाई ?? भगवान को दोष देना बंद कर वैसे भी इंसान के साथ जब कुछ बुरा होने लगता हे वो अपनी बुराइयों को ठीकरा भगवान के ही नाम पर ही फोड़ते हे। नरेश ने विवेक को समजाते हुए कहा।

तो फिर पूछ क्यों रहा था क्या हुआ क्या नहीं ? में तो वैसे भी बैठा हुआ था चुपचाप और में किसी को दोष नहीं दे रहा तूने पूछा तो वही बताया जो मेरे साथ हुआ हे। विवेक ने अपने मुँह को लटका कर कहा …

अच्छा चिढ़ना बंद कर और ये बता और क्या ऐसा हुआ जो तुझे ये सब ख्याल मन में आ रहे ? नरेश ने उत्सुकता जताते हुए आगे और जानने के लिए पूछा

कुछ नहीं हुआ भाई तू रहने दे .. विवेक ने बात को टालने के अंदाज़ में कहा।

तू तो यार सच में कुछ ज्यादा ही दुखी हो रहा हे। नरेश ने विवेक की और देख चिंता भरे स्वर में कहा।

भाई ऐसा हे की आज जो मेने माँगा हे अगर उसमे कुछ भी उल्टा हुआ तो मेरी बहुत बुरी तरह से लंका लगने वाली हे, और यही सोच सोच कर मेरा दिमाग ख़राब हो रहा हे। विवेक ने अपने स्वर को थोड़ा तेज़ करते हुए कहा।

क्या पहेलियाँ बुझा रहा हे सीधे सीधे ही बता दे यार। नरेश ने कहा।

मेने खुद का एक ऑफिस मांग लिया हे। विवेक ने कहा

हा तो इसमें दुखी होने जैसा क्या हे ? ये तो अच्छी बात हे न ? वैसे भी कोनसा मांगने से मिल ही रहा हे।। नरेश ने कहा।

मिल तो नहीं रहा… ये तो कन्फर्म हे.. पर इसके बजाय जो मिलने वाला हे उसका डर हे। विवेक ने अपनी आवाज़ धीरे करते हुए कहा।

हा तो क्या मिलने वाला हे यही बता दे फिर नरेश ने फिर पूछा।

वही तो नहीं पता क्या मिलने वाला हे पर कुछ तो गलत ही मिलेगा।। विवेक ने कहा।

तभी एक दम से नरेश का फोन बज उठा देखा तो ऑफिस से फ़ोन था , फ़ोन उठाने पर पता चला नरेश को अपना खुद का एक ऑफिस मिल गया हे वो भी पर्सनल सेक्रेटरी के साथ।
नरेश को फोन पर बात करते देख और उसके चहरे पर चमकती चांदनी से विवेक इतना तो समज चूका था की जिस बात का उसे डर था उस बात की शुरुवात हो चुकी हे।

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