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अपना घर सवार लू
शादी करके ससुराल आए हुए वेदिका को 2 महीने ही हुए थे।पर इन 2 महीनों में वेदिका को कई बार ये एहसास करा दिया गया था कि वो पराए घर की लड़की है। और उसे, उनके घर गृहस्ती में बोलने का कोई हक नहीं है।
यह एहसास वेदिका के सास ससुर ने ही नहीं बल्कि, उसके पति ने भी उसे करवाया था। अब शायद वेदिका को सच में कुछ बोलने का हक नहीं था क्योंकि एक लड़की अपने पिता के पीछे अपने पीहर को और अपने पति के आगे अपने ससुराल को देखती है।
पर जब पति ही यह बोल दे कि तुम हमारे मामलों में नहीं बोल सकती हो तो शायद एक लड़की को अपने पति के घर पर किसी मामले में कुछ बोलने का हक नहीं रह जाता।
वेदिका बचपन से अपने घर पर सुनते आई थी कि उसका घर तो अगला होगा, यहां तो वह मेहमान हैं। और शायद वेदिका ने यह बात मान भी ली थी क्योंकि उसने बचपन से अपनी नानी, दादी और मां को इसी रिवाज में विश्वास करते देखा है।
जब भी वेदिका अपने ससुराल में किसी भी बात में शामिल होने की कोशिश करती या अपनी बात रखने की कोशिश करती तो, सभी लोग उसे सवालीया नजरों से देखने लगते, जैसे अपनी बात रख कर वेदिका ने कोई गलती कर दी हो।
शुरू में वेदिका को लगता था कि वो नई नई इस घर में आई है शायद, इसीलिए इन लोगों को उसके सवाल या उसकी हक से कही हुई बातों की इतनी आदत नहीं होगी।पर शादी के 1 साल बाद भी जब ससुराल की तरफ से रवैया यही रहा, तब जाकर वेदिका को एहसास होने लगा कि इस घर में अभी तक उसकी जगह बनी ही नहीं है।
और यही सब कुछ वेदिका एक दिन अपने कमरे में बैठकर सोच रही थी और सोचते-सोचते उसकी आंखों से आंसू आने लगे।
उसका मन भारी हो गया और उसने अपनी मां को फोन मिला दिया। खुद को संभालते हुए वेदिका ने अपनी मां से पूछा कि”हेलो मां! आप कैसी हैं?”वेदिका का यह सवाल सुनकर शायद मां समझ गई थी और उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि
“बेटा एक लड़की का ना पीहर अपना घर होता है, और ना ही ससुराल। पर ये भी सच है कि एक लड़की के बिना दोनों ही घर, घर नहीं होते। तुझे अपने ससुराल में 1 साल होने को आ गया पर अभी तक तूने इसे अपना घर नहीं बनाया है। इसे सिर्फ अपनी जिम्मेदारी बना रखी है। जिस दिन तू इसे संवारने लगेगी, इसे संभालने लगेगी, उस दिन तुझे दोनों घर अपने लगेंगे।”
मां अपनी बात कह कर चुप हो गई और वेदिका के मुंह से पूरे जोश और उत्साह के साथ “आप सही कह रही हैं मां”केवल यही शब्द निकला।
अब मां का अपना सवाल था”कि क्या कर रही हो बेटा थोडे दिन घर आ जाओ।”
वेदिका ने मुस्कुराते हुए कहा”आ जाऊंगी मां पहले अपना घर सवार लूं”और इतना कह कर वेदिका ने अपनी मां का आशीर्वाद लिया और फोन रख दिया।
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