Me or Dusari Dunia Part 1 – मै और दूसरी दुनिया भाग 1
कहानी लेखक :- योगेश चंद्र शर्मा
लीगल राइट्स – यह कहानी पूर्णतया कल्पना पर आधारित हे जिसका किसी वास्तविक जीवन से कोई लेना देना नहीं हे एवं लेखक ने स्वयं इसे कल्पना के आधार पर लिखा हे यदि कोई व्यक्ति इस कहानी को कही भी किसी भी रूप मे काम मे लेता हे तो उस व्यक्ति को पहले लेखक को इस कहानी का पूर्ण भुगतान करना होगा। यदि कोई व्यक्ति लेखक की अनुमति के बिना अपने काम मै लेगा तो लेखक को स्वतंत्र रूप से उस व्यक्ति पर क़ानूनी कार्यवाही करने का पूर्ण अधिकार होगा। जिसके समस्त हर्जे खर्चे का जिम्मेदार इस कहानी का दुरूपयोग करने वाला वह व्यक्ति स्वयं होगा। कृपया कहानी को लेखक से ख़रीदे बिना कही भी प्रयोग मै न लाये।
खाना खा कर छत्त पर घूमने की आदत, मेरी ज़िंदगी का एक हिस्सा थी पर कभी सोचा नहीं था मुझे मेरी ये आदत ज़िंदगी के उस मुकाम पर पंहुचा देगी जहा से मेरी मनचाही मुरादे देर सवेर ही सही कम से कम पूरी जरूर हो जाएगी। चलिए में आपको शुरू से इस कहानी के बारे में बताता हु वैसे में यह समझ नहीं पा रहा हु कहा से शुरू करू पर जहा से भी शुरू करू इतना तो यकीन हे आप समझ कर भी मेरी बातो पर यकीन नहीं कर पाएंगे।
तो हुआ यु की हमेशा की तरह में ढलती शाम के वक़्त छत्त पर टहल रहा था और टहलते टहलते उप्पर आसमान में जाते सूर्य की रोशनी के साथ संघर्ष करते हुए अपनी चमक लिए निखरते हुए तारो की खूबसूरती को भी बिच बिच में निहारे जा रहा था। एक तरफ मेरे घर के सामने पहाड़िया और उस पहाड़ी के पीछे से उदित होता चन्द्रमा मुझे शाम के रंगीन नज़ारो में डुबो रहा था तो दूसरी तरफ लगभग ढल चुके सूर्य का प्रकाश अब भी आसमान में अपनी अंतिम किरणों के साथ आज के दिन की आखरी रोशनी बिखेरता हुआ रात के रंग में ढलते आसमान से विदा ले रहा था।
शाम का यह खूबसूरत नज़ारा जिसको में बता रहा, लगभग मेरे लिए नामुकिन सा हे पूरी तरह से आपके सामने इसका वर्णन कर पाना, पर शायद मेरे इतना लिखने भर से आप उस नज़ारे की एक झलक का अंदाज़ा लगा सकते हे।
यह सब कुछ मेरे लिए हर रोज़ की तरह ही एक सामान्य सी प्रकिया थी या दूसरे शब्दों में कहा जाये तो इसमें मेरे लिए कुछ भी नया नहीं था। मेरे लिए प्रकृति का ये अनुपम, मनोहारी दृश्य में हर दिन यही मेरे घर की इसी छत से निहारता हु, परन्तु आज का यह दिन इस पुरे दृश्य के साथ घटने वाली उस घटना से जुड़ा था जो इस होने वाली घटना को मेरे जीवन में भी नयापन देने जा रही थी।
आसमान के इस सुन्दर के दृश्य को निहारते हुए अचानक से मेने देखा एक तेज़ चमकती चीज़ बिलकुल मेरे घर की और ही आ रही थी।।। समझ ही नहीं आ रहा था ये एक पल के लिए क्या हुआ क्युकी अचानक से वो चमक भी गायब हो गयी और आसमान जैसा सामान्य दिख रहा था फिर से वैसा ही नज़र आने लगा। अब मेरा मन अचानक से हुए इस बदलाव को ले कर तरह तरह के कयास लगाए जा रहा था परन्तु मुझे इन कयासों में से एक भी संतुष्टि भरा उत्तर अभी भी नहीं मिल पा रहा था।
जिस चमक को देखते हुए मै अचानक से रुका था अब उस चमक की वजह की सोच मन मे लिए अब मे फिर से इधर उधर टहलने लगा।
शायद कोई तारा टुटा होगा। पर इतनी ज्यादा चमक….हो सकता हे तारा धरती के काफी करीब आ गया हो …शायद अब तक तो न्यूज़ मे इसकी कोई खबर आ भी चुकी होगी। मेरे मन मे इस तरह के काफी प्रश्न चल रहे थे परन्तु अब तक मे मेरे मन को एक भी ऐसा संतुष्टि भरा जवाब नहीं दे पाया था जिस से यह घटना मेरे दिमाग से निकल पाए और मे अपने रोजमर्रा की दिनचर्या पर आगे बढ़ पाऊ।
योगी ?? (एक आवाज़ आयी)
मे एक दम हक्का बक्का था समझ ही नहीं पाया ये क्या हुआ ? मुझे किसने पुकारा इतनी अजीब आवाज़ मे। चलते चलते मे अब तक रुक चूका था वैसे भी ऐसे समय मे चलने रुकने से ज्यादा ध्यान भागने मे होता परन्तु घर मेरा, छत मेरी तो भागने का ख्याल भी मेरे दिमाग से दूर ही था। आवाज़ छत के कोने मे पड़े कुछ कबाड़ की तरफ से आयी। शायद इतना कबाड़ काफी था किसी के भी छुपने के लिए इसलिए छुपने वाले ने भी यही जगह चुनी।
सामने आओ जो भी हो। (मेने अपनी आवाज़ को थोड़ा तेज़ करते हुए कहा )
सामने ही हु। (प्रतिउत्तर मे आवाज़ आयी )
सामने हो तो मुझे क्यों नहीं दिख रहे और तुम हो कौन? (मेने अपने मन के अंदर के डर पर काबू पाते हुए पूछा)
एक दोस्त (उसने कहा)
दोस्त छिपते नहीं (मेने कहा )
तो मेँ तुम्हारे सामने ही हु (उसने फिर से अपनी बात दोहराई)
मेँ अब भी तुम्हे नहीं देख पा रहा (मेने थोड़ा खीज कर कहा)
देख भी नहीं पाओगी जब तक की पृथ्वी के समय के हिसाब से पुरे 16 मिनट्स नहीं हो जाते। (उसने कहा)
ये 16 मिनट का क्या हिसाब हे भाई ? तुम कोई एलियन हो? (यकायक मेने अपने मन के डर को दूर करते हुए पूछा)
हा पृथ्वीवासियों के लिए दूसरे ग्रह (dusari duniya) से आने वाला हर एक प्राणी एलियन ही हे कह सकते हो। हमारे यहा हमारी प्रजाति को “कुक्का” कहते हे। (उसने कहा)
कुक्का हो या फुक्का हो मुझे क्या लेना देना और एक बात बता अगर तू एलियन हे तो हमारी भाषा कैसे बोल रहा ? (मेने गुस्सा करते हुए पूछा)
मेँ तुम्हारी भाषा नहीं बोल रहा तुम मेरी भाषा बोल रहे हो। (उसने फिर कहा)
मै तुम्हारी भाषा जानता ही नहीं तो बोलूंगा कहा से, मै ही मिला हु क्या बेवकूफ बनाने के लिए? मेने अपने भाइयो के नाम लेते हुए कहा तुम लोग मेरे साथ कोई मज़ाक कर रहे हो क्या?
नहीं मै सच कह रहा ये बोलते हुए उसने खुद को साबित करने के लिए अचानक से मुझसे बिना रुके कुछ भी बोलने को कहा।
उसके कहे अनुसार जब मेने बोलना शुरू किया तुम हो कौन….?? कहा से हो …?? क्या हो….? तो मेरी आवाज़ मुझे दूसरी भाषा के कुछ शब्दों मै सुनाई दी जो की वास्तविकता मै कुछ ऐसे शब्द बोले जा रही थी जो मै समज ही नहीं पा रहा था।
ये क्या था ? (मेने एक दम से आश्चर्य से पूछा )
ये वो भाषा थी जिसके जरिये हम और तुम बात कर रहे और इसे मेने हमारे यहाँ बनाये उस यन्त्र से तुम्हे सुनाया जिसके जरिये इंसान हमसे हमारी भाषा मै बात कर पाए और हम आपस मै एक दूसरे को समझ पाए ।
मेने उसे बिच मै रोकते हुए कहा अच्छा ठीक हे मुझे तुमसे फालतू की साइंस नहीं सीखनी मैन मुद्दे पर आओ।।। तुम यहाँ कर क्या रहे हो ? और तुम्हे पूरी दुनिया मै मेरा ही घर मिला आने को ?
मै आया नहीं लाया गया हु वजह तुम इंसान ही हो (उसने गरज़ कर कहा ऐसा लगा मानो जैसे यहाँ आने का उसका मन ही न हो बस जबरदस्ती भेजा गया हो) और तुम्हे इसलिए चुना गया हे क्यकि इस पूरी दुनिया मै सिर्फ एक तुम ही ऐसे इंसान हो जो हमारी भाषा समझ सकता हे। हमने तुम्हारे बारे मै पहले से ही पता लगा रखा हे और हम ये भी जानते हे की तुम हमारी मदद करोगे।
क्यों तुम तुम्हारे ग्रह के ज्योतिषी हो क्या …मेने जिकारुल को बिच में रोकते हुए पूछा(अब लगभग मेरा डर उस अदृश्य एलियन से ख़तम हो चूका था ) और मै तुम्हारी मदद क्यों करू इसमें मेरा क्या फायदा हे?
फायदा हे योगी (उसने मुझे बिच मै रोकते हुए कहा )
क्या फायदा हे और तुम मेरा नाम कैसे जानते हो….अच्छा जानते ही होंगे मेरे बारे मै तो तुम पहले ही सब हिसाब किताब कर के बैठे हो।
अब तक हमारी बातो के बिच पुरे 16 मिनट हो चुके थे और अचानक से एक अजीब प्राणी मेरी आखो के सामने था। उसको देखने के बाद मेरे मन मै और कई सरे प्रश्न शुरू हो गए और सच बताऊ तो उसको देख कर मुझे डर से ज्यादा हसी आ रही थी। टिड्डे जैसी शकल और मकड़ी जैसे पतले पतले पैर, मन तो कर रहा था एक फूक मर के उड़ा दू। मेने जोर से हसते हुए कहा तो तुम कूका हो।
नहीं कूका हमारी प्रजाति का नाम हे और मेरा नाम “जिकारुल” हे।
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भाई जिकारुल मुझे तुम्हारा नाम तुम्हारी तरह ही अजीब लग रहा खेर सबसे पहले मुझे अब ये बताओ मेरा क्या फायदा हे तुम्हारा साथ देने से ? (मेने जिकारुल से उत्सुकता के साथ पूछा)
तुम्हारा यह फायदा हे की तुम मेरे जरिये भविष्य देख पाओगे। (उसने मेरे प्रश्न को बिच मै रोकते हुए ही बोल दिया जैसे उसे ऐसी प्रश्न का इंतज़ार हो )
वाह तो मै भविष्य देख पाउँगा ?? वो भी तुम्हारे जरिये। अगर ऐसा ही हे तो तुम्हे मेरी क्या जरूरत ?? खुद ही भविष्य देख कर अपनी समस्या सुलझा लो (मेने एक बार फिर से मजाकिया लहज़े मै कहा। )
जरूरत हे योगी तभी मै यहाँ हु। (इस बार जिकारुल का स्वर थोड़ा गंभीर था)
नोट :- आगे की कहानी आपको पार्ट 2 के माध्यम से मिल जाएगी फिलाहल आपको यहाँ तक की कहानी कैसी लगी इस बात की जानकारी निचे दिए गए कमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताये और कहानी यदि पसंद आयी हो तो इस कहानी को अपने घर परिवार एवं मित्रो के साथ जरूर शेयर करे। धन्यवाद।।
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I m excited for part 2
Thank you so much for this comment, I will try my best to provide more entertainment through the next part 🙂 Keep sharing this story with friends and family members.